नाटक
इन्क़लाब हमरे दम से आयी
नाटक
इन्क़लाब हमरे दम से आयी
उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के 150 से अधिक गांवों में सक्रिय संगतिन किसान मज़दूर संगठन ने अपनी कलात्मक गतिविधियों को गम्भीरता से आगे बढ़ाने के लिये 2016 में संगतिन कला मंच की स्थापना की। इस संगतिन कला मंच के तहत दिनांक 8 से 14 दिसम्बर 2016 तक सीतापुर शहर में एक सात दिवसीय नाट्य कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें एक गहन सामूहिक प्रक्रिया से गुज़रते हुए संगठन के 17 साथियों ने साथी ऋचा नागर तथा साथी तरुण कुमार के साथ मिलकर 'इन्कलाब हमरे दम से आयी' नामक नाट्य-प्रस्तुति रची। यह नाटक सीतापुर शहर के बीचोबीच पुराने पंजाब नेशनल बैंक के पास 14 दिसम्बर 2016 को पहली बार खेला गया। दर्शकों ने इसका खूब आनन्द लिया तथा इसे एक मनोरंजक और अत्यन्त विचारोत्तेजक पहल कहकर नाटक की खुले दिल से प्रशंसा की। दिसम्बर माह में मंच के कलाकारों ने इस नाटक की सात और प्रस्तुतियां सीतापुर शहर में कीं।
प्रतिभागी साथी
अभिनय
प्रकाश
बिटोली
टामा
सुनीता (आंट)
सुनीता (कुतुबनगर)
मनोहर (बड़े)
मनोहर (छोटे)
अनीता
मालती
चन्द्रपाल
राजाराम
रामपति
कमला
रेखा
सन्तोषी
संगीत
सिद्धू--ढोलक
सुन्दरलाल--हारमोनियम
सामूहिक प्रक्रिया का नेतृत्व और नाट्य आलेख
ऋचा नागर
निर्देशन
तरुण कुमार
व्यवस्था
ऋचा सिंह, प्रकाश, कमल
परिकल्पना, आयोजन, संयोजन
ऋचा नागर, ऋचा सिंह
दर्शकों को जुटाने लिए संगीत की शुरुआत
प्रकाश द्वारा उद्घोषणा--संगतिन कला मंच आपके सामने प्रस्तुत करता है एक नुक्कड़ नाटक-- ‘इंकलाब हमरे दम से आयी।’
पहला दृश्य शुरू होने के पहले संगठन की एक साथी दर्शकों को तैयार करने के लिये उनसे बातचीत शुरू करती है--
संगठन की साथीः भाइयों और बहनों, आपने विकास का नाम तो सुना होगा। कौन है विकास? क्या है विकास?
एकाध दर्शक अपनी प्रतिक्रिया देते हैं।
संगठन की साथीः इसी तरह आपने आतंकवाद का नाम भी सुना होगा। लेकिन आपने शायद यह नहीं सुना होगा कि विकास की नीतियां ही कैसे ग़रीब किसानों और मजदूरों पर कहर बरपाती हैं और उनके लिये सबसे बड़ा आतंकवाद बन जाती हैं! यानी, एक तरफ़ तो विकास की नीतियां हमारे गांवों में सड़कों का जाल बिछाने की बातें करती हैं और दूसरी तरफ़ वही व्यवस्था हमारे मजदूर भाइयों और बहनों के तन में मौजूद नसों और धमनियों के जाल को कमज़ोर कर देती हैं, उन्हें जीते-जी ख़त्म कर देती हैं....लेकिन विकास और आतंकवाद के बीच के इस रिश्ते की कहानी आपको कोई नेता या किसी पार्टी से सुनने को नहीं मिलेगी। इन रिश्तों के भेद तो आपको गांव के मज़दूर-मज़दूरनियां और किसान ही बता सकते हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि,
(गाकर)
एक हमारी और एक उनकी, मुल्क में हैं आवाजें़ दो
अब तुम पर है, कौन सी तुम आवाज़ सुनो, तुम क्या मानो!
इस पूरी व्यवस्था में वैसे तो तमाम खेल उलझे हैं, लेकिन आज का नाटक सिर्फ़ आज की तारीख़ में चल रहे एक खेल के बारे में गांव के मज़दूरों किसानों की नज़र से अपनी बात कहता है। आप ही बताइये भला वो कौन सा खेल होगा?
दर्शकों में से एक साथीः नोटबन्दी का खेल!
संगठन की साथीः बिलकुल सही। वो खेल है, नोटबन्दी का खेल! लेकिन नाटक दिखा रहे हैं तो एक शर्त पर। पूरा नाटक देखियेगा और नाटक के बाद बतियाने के लिये थोड़ी देर रुकियेगा ज़रूर। तभी तो व्यवस्था पर असली बात होगी! तो पेश है संगतिन कला मंच का नाटक--‘इंकलाब हमरे दम से आयी।’
(ढोलक की थाप के साथ पहला दृश्य)
दृश्य 1
(मन्त्री जी कन्धों पर शाॅल डालकर घेरे में आते हैं।)
मन्त्री जीः मित्रों! मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों! मैं एक गरीब किसान का बेटा हूँ। मैंने स्टेशन पर चाय बेची है। मैंने अपना घर छोड़ा है -- किसके लिए? अपने देश के लिए! मैंने अपनी पत्नी को छोड़ा है -- किसके लिए? अपने देश के लिए! मैं गरीबो का दर्द समझता हूँ। गरीबी, आतंकवाद और भ्रष्टाचार को खतम करने के लिए मैं आज से ५०० और १००० के नोट बंद कर रहा हूँ मुझे मालूम है कि इससे आपको थोड़ी तकलीफ होगी। लेकिन मुझे सिर्फ ५० दिन चाहिए। मेरा आपसे वादा है कि ५० दिनों में मैं गरीबी, भ्रष्टाचार, और आतंकवाद को समाप्त कर दूंगा।
मन्त्री जी के भाषण के बाद पूरी टोली ‘इंक़लाब’ गीत की केवल पहली लाइन गाते हुए प्रवेश करती है-
इंकलाब बबुआ, हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ, हमरे दम से आयी
जैसे ही गोल घेरा पूरा बन जाता है, वहीं गायन बंद हो जाता है।
दृश्य 2
सुनीताः अरे बहनी, पांच महीना हुइगे मनरेगा का पैसा नाय मिला।
बिटोलीः अरे सुनीता, 25 नवम्बर 2016 को लखनऊ मंत्री जी से बातचीत भई रहाय कि 10 दिन में पैसा मिल जाई।
रेखाः बिटोली अम्मा, बिटोली अम्मा, अबहे अखबार पढ़े रहन कि 670 करोड़ रूपया भारत सरकार यू.पी. सरकार कइहा दै दीहिस है।
अनीताः सुने हैं, मनरेगा का पैसा खाते में आय गवा है। चलो निकाल लाई चलै।
गाना
हल चला के खेतों को मैंने ही संवारा रे
गेहूं भी उगाया मैंने धान भी उगाया रे
रहूँ क्यों भूखे पेट रे कि मेरे लिए काम नहीं
हल चला के खेतों को मैंने ही संवारा रे
गेहूं भी उगाया मैंने धान भी उगाया रे
रहूँ क्यों भूखे पेट रे कि बैंक में नोट नहीं
‘बैंक में नोट नहीं’ लाइन के होने के साथ ही बैंक मेनेजर मंच पर अपनी जगह लेता है।
दृश्य 3
राजारामः बैंक मैनेजर चिरपोटन सिंह जी, नमस्ते।
मैनेजरः नमस्ते।
बिटोलीः साहब, का मनरेगा का पैसा आय गवा है।
मैनेजरः हाँ पैसा आ गया है मगर कैश नहीं है, कैश आने पर ही भुगतान होगा।
बिटोलीः तो साहब पैसा आजु आय तौ जैबे करी?
मैनेजरः हाँ दो बजे तक कैश आ जायेगा।
बिटोलीः अरे बहिन, मेनेजर साहब कहिन है कि दो बजे तक पैसा मिलिजाई।
चपरासी (मालती)ः अरे काहे इत्ता हल्ला मचा रक्खे हो? तुम्हे बैंक के नियम नहीं पता हैं क्या ? पैसे निकालने हैं तो लाइन मे लगो। मेनेजर के कमरे में घुस आओगी क्या?
(बैंक में व्यापारी का प्रवेश)
व्यापारीः अरे चिरकुट भाई, नमस्कार।
मैनेजरः चिरकुट नहीं, सेठ जी, बैंक मैनेजर चिरपोटन सिंह कहिये।
व्यापारीः हाँ, हाँ, चिरपोटन सिंह जी, एक काम है, मेरे पास एक हजार रूपये के ५० नोट हैं, ज़रा बदल दीजिए।
मैनेजरः आप ये नज़ारा देख रहे हैं! इतने सारे किसान और मजदूर सुबह से लाइन लगाये खड़े हैं। इनका पेमेंट ५ महीने बाद आया है, इनको पैसे नहीं देंगे तो बड़ा हल्ला मचेगा।
व्यापारीः लगता है, आप हमें जानते नहीं हैं !
मेनेजरः कैसी बातें करते हैं? हम आपको जानते हैं सेठ जी. हम लोग तो आपकी सेवा के लिए ही हैं। आप हमारे मित्र की तरह यहाँ बैठ जाइये. हम आपके लिए कुछ करते हैं. (रुपया गिनता है और साथ में यारी-दोस्ती में सेठ से बतियाने का अभिनय करता है और नज़र बचा कर सेठ की पॉकेट में पैसा डालकर उसको हलके से धकेलते हुए सब मज़दूरों को सुनाने के लिए ज़ोर से कहता है) आप अभी जाइये सेठ जी। पैसा आते ही मैं सबसे पहले इन मज़दूरों और किसानों का भुगतान करूँगा। फिर आपको फ़ोन करूँगा तभी आप आइयेगा।
दृश्य 4
धुरन्धर सिंहः अरे चिरकू, नमस्कार।
मैनेजरः अरे धुरन्धर सिंह, कितनी बार कहा है हमारा नाम चिरकू नहीं चिरपोटन सिंह है। कहिए कैसे आना हुआ।
धुरन्धर सिंहः अरे मैनेजर साहब, 500 और हज़ार रूपये के बहुत सारे नोट हैं, उनके बंद होने से बड़ी दिक्कत हो गयी है। खेत की बुआई करनी है। कहीं से 30,000 रुपयों का जुगाड़ कर दीजिए।
मैनेजरः देखिए धुरन्धर सिंह जी, सुबह से किसान लाइन लगाये खड़े हैं. परसांे से कैश नहीं आया है। तीस हज़ार का भुगतान कैसे कर पायेगें?
धुरन्धरः अरे आप इतना परेशान मत हों, हम आपको समझ लेंगे। वैसे मैंने सुना है शहर में 24,000 का भुगतान कर रहे हैं।
मैनेजरः (खींसें निपोरकर) हें, हें। आप कहते हैं कि समझ लेंगे तो आप रात 8 बजे के बाद फ़ोन करके आ जाइयेगा।
(दूसरी तरफ़ से सुनीता बोलती है)
सुनीताः अरे बिटोली काकी 5 बजे वाला है कोई खबर नाय लिहिस।
मेनेजरः 5 बज रहा है, अब तो कैश का आना मुश्किल है. सब लोग कल आना।
गाना
हल चला के खेतों को मैंने ही संवारा रे
गेहूं भी उगाया मैंने धान भी उगाया रे
रहूँ क्यों भूखे पेट रे कि बैंक में नोट नहीं
दृश्य 5
मैनेजरः ये लीजिये धुरन्धर सिंह, 30 हज़ार की जगह 28,000 रूपया दे रहा हूँ।
धुरन्धरः (थोड़ा दुखी होते हुए) अरे आपने तो दो हज़ार काट लिए! चलिए ठीक है।
गाना
एक हमारी और एक उनकी, मुल्क में हैं आवाजें़ दो
अब तुम पर है, कौन सी तुम आवाज़ सुनो, तुम क्या मानो
दृश्य 6
धुरन्धर विधायक के पास जाता है।
धुरंधरः विधायक जी, नमस्कार। साहब आपने हमारे पास जो २२ लाख रखवाए थे वो सब 500 और हज़ार के नोट हैं। उनका क्या करना है?
विधायकः अच्छा, तुम्हारे पास भी हमारे पैसा है। चलो बड़ा पैसा तो हमने ज़मीन, सोना और हीरा ख़रीदकर सुरक्षित कर लिया है, अब इसका भी बन्दोबस्त कर देते हैं।
धुरंधर (घबराकर)ः अरे साहब, हम कैसे कुछ बन्दोबस्त कर पायेंगे!
विधायकः उसका इंतज़ाम हम करेंगे न। तुम हमारे फ़ोन का इंतज़ार करना।
दृश्य 7
गटगटाईनः हल्लो धुरंधर सिंह जी, हम गटगटाइन बोल रहे हैं।
घुरंधरः कौन गटगटाईन?
गटगटाईनः सुनो, हम विधायक जी के यहाँ से बोल रहे हैं। विधायक जी का पैसा आ गया आपके पास?
धुरंधरः हाँ हाँ, हमने सुना है कि जनधन खातों से उन्होंने कुछ करवाया है।
गटगटाईनः हाँ, ऐसा कीजिये, आप कल पिसावां के कंगाल बैंक में आ जाइयेगा।
दृश्य 8
(सुनीता अपने साथियों से उनके खातों में पैसा जमा करने की बात करती है और सबको ले जाकर उनके पैसे जमा करवाती है।)
सुनीताः अरे सुनो, अब हम लोगों के खातों में पैसा आये वाला है।
बिटोलीः अरे, क्या वो मन्त्री जी वाले १५ लाख?
सुनीताः अब वो सब पता नहीं, मुला पैसा आये वाला है।
दृश्य 9
मंत्री जीः भाइयों और बहनो, हमने बचपन में चाय बेची है इसलिए हर ग़रीब का दुःख-दर्द समझते हैं. हमने भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जो क़दम उठाये है उसके तहत कुछ लोग अपना कालाधन सफे़द करने के लिये ग़रीब भाइयों और बहनों के ख़ातों में जमाकर रहे है। मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों, देश का सारा पैसा तो ग़रीबांे का ही है -- है कि नहीं? इसलिये सभी भाई बहनों से मेरी अपील है कि जिस भाई या बहन के खाते में कहीं से भी किसी प्रकार का पैसा जमा किया गया है, वह पैसा अब उसी भाई या बहन का हो गया है। अब वह पैसा आप किसी को न दें। अगर कोई किसी प्रकार का दबाव बनाये को आप मुझे सीधे 3535 पर फ़ोन करें। मैं आपके साथ हूं, धन्यवाद।
दृश्य 10
रेखाः अरे सुनीता दीदी आज टी.बी. पर मन्त्रीजी ने कहा कि जिसके खाते में पैसा जमा हुआ है वह उसी का हो गया।
सबः हर-हर मन्त्री, घर-घर मन्त्री। हर हर तन्त्री, घर घर तन्त्री।
सन्तोषीः एल्लो, मन्त्री जी खुदै कह रहे हैं कि बेईमानी करो।
मालतीः अरे ये है भक्ति।
अनीताः ऐसे होती है भक्तों की खेती।
रामपतीः भक्त ही भक्त।
राजारामः सोशल मीडिया. हो, हो, हो
दृश्य 11
सुनीताः हैलो धुरंधर, मै गटगटाईन बोल रही हूं। तुमने कुछ सुना, मन्त्री जी ने क्या कहा है?
धुरंधरः नहीं मैने तो कुछ नहीं सुना।
सुनीताः मन्त्री जी का आदेश है कि जनधन में जो पैसा जमा हुआ है वो अब खाता धारकों का हो गया है।
धुरंधरः गटगटाईन उनसे बात करो और कहो कि हमारा पैसा निकाल कर दे दें नहीं तो बहुत बुरा होगा।
सुनीताः ठीक है, मैं बात करके बातऊंगी।
गाना
साहब बार बार पछताउ जो हमसे दगा करोगे
जो हमसे दगा करोगे, गदहे का जनम मिलेगा
ईंटा ढोये-ढोये मर जाउ
जो हमसे दगा करोगे बकरे का जनम मिलेगा
पाव-पाव बिक जाउ
साहब बार बार पछताउ जो हमसे दगा करोगे
गटगटाईनः जउन पैसा तुम लोगन के खातों में आवा रहे वो वापिस निकार कर देइ दौ।
बिटोली और अन्य साथीः वह पैसा तो हमार हुइगा। वाहमा से हम एकौ पइसा नाय देब।
गटगटाईनः (दर्शकों को देखकर) तुम लोग तो हमका मरवैहौ!
सुनीताः धुरन्धर सिंह, मैंने खाता धारकों से बात की है, वो सब पैसा देने से साफ़ मना कर रहे हैं।
धुरन्धरः ठीक है गटगटाईन, हमको भी अपना पैसा निकलवाना आता है।
दृश्य 12
(सारी औरतें रोती-धोती आती हैं कि हमारे बच्चे स्कूल से अभी तक नहीं लौटे।)
बिटोलीः अरे, हमार लरिका !
कमलाः हमार बिटिया ११ साल की है !
गटगटाईनः (दर्शकों को देखकर) अरे वही दस लोगन के लरिका बिटिया गायब भये हैं जिनके पैसा हम जनधन मां जमा कराईन रहे।
दृश्य 13
धुरन्धरः मैनेजर साहब, ये कपसा के 10 खाता धारक है जिनके खाते में हमने 5-5 लाख रूपये जमा किया है। ये हमारा पैसा है। हमारे बिना इनका भुगतान मत करना. और सुनो, कोई तरकीब सोचो ताकि ये हमारा पैसा हमें मिल जाये।
मैनेजरः ठीक है हम सबको बुलाकर विथड्राल पर अंगूठा लगवा लेते हैं, पैसा आप ले जाइयेगा
(सारे साथी पहुँचकर अंगूठा लगते हैं और विथड्राल फॉर्म पर साइन करते है)
मैनेजरः धुरन्धर जी काम हो गया!
धुरन्धरः अमां, विधायक जी तो खिलाड़ी आदमी हैं ही!
दृश्य 14
ढोंगालालः (100 नम्बर पर फोन करके) सुनिए इंस्पेक्टर किरकिरी, मैं कंगाल बैंक शाखा फकीरगंज से ढोंगालाल बोल रहा हूँ। मैडम, इस शाखा में करोड़ों रूपयों की हेरा-फेरी हो रही है। आप यहां जल्दी आ जाइये।
किरकिरीः अरे, सभी जगहों से ऐसी झूठी खबरें आ रही है, पुलिस वालों का क्या फालतू समझ रक्खा है।
ढोंगालालः मैडम, आप देख लीजिये।
किरकिरीः चलो आते हैं।
दृश्य 15
राजारामः तो क्या ये सारी दिक्कतें बैंक वालों की वजह से हैं? यानि नोटबन्दी की योजना तो बड़ी अच्छी और नेक है लेकिन इन कमबख़्त बैंकवालों और बिचैलियों ने लूट-खसोटकर उसे बरबाद कर दिया?
बिटोलीः नहीं भैया, हम तो ये कह रहे हैं कि पूरी की पूरी व्यवस्था ही लोकतन्त्र के नाम पर एक भद्दा मज़ाक है।
अनीताः पूरे के पूरे तन्त्र में एक भी कड़ी ऐसी नहीं जो ग़रीबी, आतंकवाद, और भ्रष्टाचार ख़त्म करने की आड़ में उलटे ग़रीब जनता का ख़ून चूसने पर आमादा न हो।
राजारामः तो क्या काले नोट बंद होने से क्या काली व्यवस्था खत्म हो जाएगी?
सब साथीः बिलकुल नहीं। नोटबन्दी भी काली व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये एक नया हथकन्डा है।
सब साथी गाकर
ये लंबे खेल हैं साथी! ये उलझे खेल हैं साथी!! (2)
साथी 1 (रेखा)ः ये काली नीयत के काले खेल हैं।
साथी 2 (मनोहर)ः ये काले कर्ज़ों को माफ करने के खेल हैं।
साथी 3 (चंद्रपाल)ः ये ग़रीबों के जल-जंगल-ज़मीन को लूटने के खेल हैं।
सब साथी गाकर
ये लंबे खेल हैं साथी! ये उलझे खेल हैं साथी!! (2)
साथी 4 (रामपति)ः ये वोटों को जीतने के खेल हैं।
साथी 5 (कमला)ः ये कुर्सी को हथियाने के खेल है।ं
साथी 6 (अनीता)ः ये गरीबों के जल जंगल जमीन को लूटने के खेल हैं।
सब साथी गाकर
ये लंबे खेल हैं साथी! ये उलझे खेल हैं साथी!! (2)
दृश्य 16
राजारामः मैं पूछता हूँ, क्या इन लंबे खेलों से हमारे गावों के स्वास्थय केंद्रों में बिजली पहुँच जाएगी?
सुनीताः क्या वक़्त पर डॉक्टर और दवाइयां मिल पाएंगे?
अनीताः क्या हमारी फसल के लिए हमें सही दाम मिल पायेगा?
गीत
बहुत झेले हैं हमरी है बारी! बदलेंगे ये दुनिया तुम्हारी!! (2)
रेखाः क्या हमारे खून-पसीने को इज़्ज़त मिल पायेगी?
प्रकाशः आज गावों मिलने वाली शिक्षा मज़ाक बनकर रह गयी है, क्या हमारे बच्चों की शिक्षा हमारी जिन्दगी की लड़ाई में काम आ पायेगी?
चंद्रपालः बातें मजदूरों के हक और न्याय की होती हैं लेकिन सारे के सारे मस्टरोल अंग्रेजी में हैं, क्या मस्टर रोल मजदूरों की भाषा में आ जायेगा?
गीत
बहुत झेले हैं, हमरी है बारी! बदलेंगे ये दुनिया तुम्हारी!! (2)
चंद्रपालः मंत्रियों का वेतन तो लाखों में पहुँच गया है और हम मज़दूर अभी २०० की दिहाड़ी तक भी नहीं पहुंचे।
बड़े मनोहरः मंहगाई हम सबकी जान ले रही है, क्या महंगाई के हिसाब से हमारी मज़दूरी बढ़ सकेगी?
संतोषीः हमरे गाँव के बड़े बूढ़न का क्या इज्जत से पेंशन मिली?
सुन्दरलालः हमरे पास घर नाहीं है, का हमका आवास मिल पाई?
गीत
बहुत झेले हैं हमरी है बारी! बदलेंगे ये दुनिया तुम्हारी!! (2)
चंद्रपालः क्या काले अधिकारियों की काली करतूतें बदल जाएँगी?
अनीताः (तीखे स्वर में) दुनिया में एक हमारा देश ही है जहाँ दलितों के बच्चों को गटर में धकेलकर उनसे सफाई करवाई जाती है. क्या इन खेलों से हमारे इन साथियों की हालत बदल जाएगी?
राजारामः (तीखे स्वर में) किसानों के जो बेटे सिपाही बनकर देश के लिए शहीद होते है उनके गुणगान तो हम गाते हैं, लेकिन पिछले पंद्रह सालों में जो तीन लाख किसान मरे हैं उनके बलिदान का कोई नामोनिशाँ नहीं। उन किसानों की शहादत की जिम्मेदारी क्या हमारी सरकारें ले लेंगी?
गीत
इंकलाब बबुआ, हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ, हमरे दम से आयी
नोट बंदी से आयी न मेट्रो से आयी (2)
सारे साथी -- तो कैसे आयी?
व्यवस्था की बदली कराई (2)
अरे, इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
हाईवे से आयी न स्मार्ट सिटी से आयी (2)
सारे साथी -- तो कैसे आयी?
व्यवस्था की बदली कराई (2)
अरे, इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
कम्बल से आयी न लंच पैकेट से आयी (2)
सारे साथी -- तो कैसे आयी?
व्यवस्था की बदली कराई (2)
अरे, इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
लैपटॉप से आयी न सेल फोन से आयी (2)
सारे साथी -- तो कैसे आयी?
व्यवस्था की बदली कराई (2)
अरे, इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
ए.टी.एम. से आयी न पे.टी.एम. से आयी (2)
सारे साथी -- तो कैसे आयी?
व्यवस्था की बदली कराई (2)
अरे, इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
इंकलाब बबुआ हमरे दम से आयी
No comments:
Post a Comment